1.सुमति- भरत-ऋषभ
2.प्रतीह आत्म विद्या का उपदेश, साक्षात भगवान श्री नारायण का अनुभव किया था।
3.गय- प्रजा के पालन पोषण रंजन लाड चाव और शासन आदि करके तथा तरह तरह के यज्ञों का अनुष्ठान करके निष्काम भाव से केवल भगवतप्रीति के लिए अपने धर्म का आचरण किया। नित्य- तृप्त, यज्ञ- पुरुष
4.विरज प्रियव्रत वन स के अंतिम। जिस तरह भगवान विष्णु देवताओं की शोभा बढ़ाते हैं।
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