सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

चन्द्र अवस्था 3:20

 

अवस्था 

3.20 दासता से प्राण हानि.

- 2.35.53.20 स्त्रियों से विहार

- 2.57.46.40 तीव्र ज्वर

-- 3.20.0.0 सोने के आभूषण

क्रिया --

2.26.40 निष्प्राण (निशक्त या मरा हुआ)

2.40.0 जिसका सिर कटा हुआ हैं।

2.53.20 जिसके हाथ और पैर में चोट लगी हुई हैं।

3.6.40 गिरफ्तार (बंधन में)

3.20.0 विनस्ट 




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

14April

वासुदेव  " विशुद्ध परमार्थरूप,   अद्वितीय तथा  भीतर-बाहरके भेदसे रहित परिपूर्ण ज्ञान ही सत्य वस्तु है।  वह सर्वान्तर्वर्ती और  सर्वथा निर्विकार है।  उसीका नाम 'भगवान्' है और  उसीको पण्डितजन ' वासुदेव ' कहते हैं।" " महापुरुषोंके चरणोंकी धूलिसे अपनेको नहलाये बिना केवल तप,  यज्ञादि वैदिक कर्म,  अन्नादिके दान, अतिथिसेवा, दीनसेवा आदि गृहस्थोचित धर्मानुष्ठान,  वेदाध्ययन अथवा  जल, अग्नि या सूर्यकी उपासना आदि किसी भी साधनसे  यह परमात्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।"