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भागवत महापुराण28

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शब्द ब्रह्म के शब्द 17 अप्रैल

1.सुमति- भरत-ऋषभ  2.प्रतीह आत्म विद्या का उपदेश, साक्षात भगवान श्री नारायण का अनुभव किया था। 3.गय- प्रजा के पालन पोषण रंजन लाड चाव और शासन आदि करके तथा तरह तरह के यज्ञों का अनुष्ठान करके निष्काम भाव से केवल भगवतप्रीति के लिए अपने धर्म का आचरण किया। नित्य- तृप्त, यज्ञ- पुरुष 4.विरज प्रियव्रत वन स के अंतिम। जिस तरह भगवान विष्णु देवताओं की शोभा बढ़ाते हैं।

14April

वासुदेव  " विशुद्ध परमार्थरूप,   अद्वितीय तथा  भीतर-बाहरके भेदसे रहित परिपूर्ण ज्ञान ही सत्य वस्तु है।  वह सर्वान्तर्वर्ती और  सर्वथा निर्विकार है।  उसीका नाम 'भगवान्' है और  उसीको पण्डितजन ' वासुदेव ' कहते हैं।" " महापुरुषोंके चरणोंकी धूलिसे अपनेको नहलाये बिना केवल तप,  यज्ञादि वैदिक कर्म,  अन्नादिके दान, अतिथिसेवा, दीनसेवा आदि गृहस्थोचित धर्मानुष्ठान,  वेदाध्ययन अथवा  जल, अग्नि या सूर्यकी उपासना आदि किसी भी साधनसे  यह परमात्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।"